Father of the ARMED STRUGGLE for India's Independence : क्रांतिकारी वासुदेव बळवंत फडके ( Pandit Vasudev Balwant Phadke )
एक महान क्रांतिकारी जिन्होंने मातृभूमि के लिये अपना सबकुछ त्याग दिया, अंग्रेजो के खिलाफ भारतीय जागृती करने वाले आद्य क्रांतिकारक ऐसी वासुदेव बळवंत फडके / Vasudev Balwant Phadke की ख्याती है. इस महान क्रांतिकारी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी को जानते हैं.
वासुदेव (Vasudev Balwant Phadke) का जन्म 4 नवम्बर 1845 को शिरढोण गाँव मे हुआ था ! उनके पिता का नाम बलवंत राव और माता का नाम सरस्वती बाई था , उनके दो छोटे भाई और एक बहन थी ,बाल्यकाल में वासुदेव (Vasudev Balwant Phadke) बहुत शरारती थे , घरवाले और गाँववाले उसकी शरारतो से परेशान थे , बहुत दबाव के बाद उसने पढना लिखना सीखा, वह शरारते करने या बैलगाड़ी चलाने में जितने प्रवीण थे उतने ही दक्ष पढाई में भी थे ! उन्होंने मराठी ,संस्कृत और अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्राप्त कर ली !उस समय उनका विवाह हो गया और वह एक साधारण गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे !
उस समय कोई यह कल्पना भी नही कर सकता था कि वासुदेव एक दिन देशवासियों के हृदय में स्वतंत्रता की ज्वाला धधका देगे और उसके भय से लन्दन में बैठे गोर भी काँप उठेंगे ! वासुदेव जब नौकरी में थे तो वह अन्याय के विरुद्ध गोर अधिकारियों से झगड़ पड़ते थे! इससे वे उन पर नाराज रहते थे ! झगड़े का मुख्य कारण था गोरो का भारतीयों के प्रति अपमानजनक व्यवहार इसलिए वह नौकरी छोड़ते रहे और दुसरी नौकरी में जाते रहे ! सन 1865 में उनको पुणे के कमिश्नर के कार्यालय में नौकरी मिल गयी और वह मुम्बई से पूना आ गये जहा वह क्रांतिकारी बनने तक नौकरी करते रहे !
पुणे में जहा भी वह रहते थे स्पष्ट रूप से अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करते थे और ब्रिटिश शासन का विरोध करते थे , मकान मालिक सरकार के भय से उससे मकान खाली करा देते थे और हर 4-5 महीने में उनको घर बदलना पड़ता था! पांच वर्ष इसी तरह बीत गये वासुदेव को माँ की गम्भीर बीमारी की खबर मिली वह छुट्टी लेकर अपने घर जाना चाहता था परन्तु उसको छुट्टी नही मिली !अंत में वह बिना छुट्टी मंजूर हुए ही गाँव चला गया परन्तु जब गाँव पहुचा तब माँ स्वर्ग सिधार चुकी थी ! उसको माँ के श्राद्ध कर्म के लिए भी अवकाश नही मिला माँ की एक वर्ष बाद बरसी मनाने के लिए भी उसको छुट्टी नही मिली !
इन घटनाओं के कारण फडके के हृदय में दबी हुयी चिंगारी अचानक ज्वाला की तरह भडक उठी | अब वह खुलेआम शैतान अंग्रेजो को अपनी मातृभूमि से निकाल बाहर करने के लिए बोलने लगा | उसने सर्वप्रथम ब्रिटिश सामग्री का बहिष्कार किया | वह स्वदेशी वस्तुओ को काम काम में लेने का प्रचार कर रहा था | उन दिनों छतरी एवं कलम भी ब्रिटेन से आते थे उसके पेन की जगह स्र्कन्दी का प्रयोग आरम्भ कर दिया | धीरे धीरे ये क्रांतिकारी विचार दृढ़ होते गये |
वह ढोल और थाली बजाकर चौराहे पर लोगो को जमा करते और ब्रिटिश विरोधी भाषण देते थे |फडके स्पष्ठ शब्दों में कहते थे कि ये गोर भारतवासियों को लुट रहे है | इन्होने हमारे उद्योग नष्ट कर दिए है | सरकार गोरो को नौकरी देती है और वह हमारे हजारो रूपये प्रतिमाह वेतन के रूप में लेते है | जब तक हम स्वतंत्र नही होंगे , सुखी नही हो सकेंगे | जब तक ये लुटेरे यहा है सुरक्षा या शान्ति का स्वप्न भी नही देखा जा सकता इसलिए मेरे भारतवासी बंधुओ उठो , जग जाओ और अंग्रेजो को अपने घर का रास्ता दिखाओ |
हजारो लोग वासुदेव (Vasudev Balwant Phadke) का भाषण सुनने आते परन्तु जब उनकी बातो को क्रियारूप में परिणित होने की बात होती मौन हो जाते | कोई भी ब्रिटिश राज के विरूद्ध कुछ भी करने को तैयार नहे था | अंत में वासुदेव इस निष्कर्ष पर पहुचे कि ये भद्र लोग केवल भाषण सुनकर अपना समय व्यतीत करने आते है परन्तु कुछ भी करना नही चाहते | उन्ही दिनों प्राकृतिक प्रकोप हुआ और भयंकर अकाल पड़ गया जिसने फडके को नया रास्ता दिखाया |
सन 1876 ईस्वी का दक्षिण का यह भयंकर अकाल था | हजारो व्यक्ति और लाखो पशु भूख से मर गये | सरकार ने अकाल राहत के बहुत कम काम शुरू किये | सहायता के रूप में आधा सेर अनाज प्रति माह दिया जाता था और राहत कार्य पर डेढ़ आना प्रतिदिन मजदूरी दी जाती थी | अंग्रेज व्यापारी विदेशो से अन्न मंगवाकर चांदी कूट रहे थे | उन्होंने स्वयं महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के गाँवों में घूम-घूमकर अकाल में लोगो के जो दुर्दशा थी उसको देखा |
उन्होंने देखा कि भारत जलकर राख हो परन्तु अंग्रेजो को क्या ? वे तो मौज-मस्ती कर रहे है | उन्होंने सोचा कि शहरों के लोग कुछ नही करेंगे परन्तु गाँवों और जंगलो पहाड़ो में रहने वाले आदिवासी लोगो की आत्मा अभी भी जागृत है | वे संघर्ष कर सकते है | शिवाजी ने मुगलों पर जैसे छापामार युद्ध के द्वारा विजय प्राप्त ली थी उसने वैसे ही गोरिल्ला युद्ध आरम्भ कर दिए | अब तक वह खुला संघर्ष कर रहे थे लेकिन अब उसने गुप्त संघर्ष आरम्भ कर दिया | अब उसका उद्देश्य सैनिक स्शस्स्त्र क्रान्ति थी
कई पीढियों से जंगल पर आदिवासी जन का अधिकार था परन्तु अंग्रेजो ने जंगल से लकड़ी काटने पर प्रतिबन्ध लगा दिया | यहा तक कि जंगल में वे पशुओ को भी नही चरा सकते थे | उन दिनों सूदखोर साहुकारो के विरुद्ध भी दंगे भडके हुए थे | रामोशी आदिवासी लोगो को इन दंगो के लिए बंदी बनाकर अंग्रेजो ने यातनाये दी थी | प्रत्येक रामोशी आदिवासी को प्रतिदिन पुलिस थाने या चौकी पर हाजरी देना अनिवार्य कर दिया | इस तरह रामोशी जन में ब्रिटिश राज के विरुद्ध गहरा असंतोष था |
उसी समय फडके (Vasudev Balwant Phadke) ने उनको सशस्त्र क्रांति करने के लिए आमंत्रित किया | सैकड़ो रामोशी जन अपने परम्परागत मुखियाओ के साथ फडके की कान्तिकारी सेना में भाग लेने आ गये | उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक स्वराज नही मिलेगा हम लड़ते रहेंगे | प्रत्येक गुरुवार को फडके के पास नये दल लाने लगे और स्वराज प्राप्ति तक संघर्ष करने का प्रण लेते रहे | सन 1879 तक वासुदेव ने पर्याप्तसशस्त्र सेना का संघठन कर लिया था | वह स्वयं नौकरी छोडकर लडाकू सेना में सम्मिलित हो गया |
स्वतंत्र भारत सेना का वह सेना नायक बन गया | उसने धनी व्यक्तियों को अस्त्र-शस्त्र खरीदने के लिए आर्थिक सहायता माँगी परन्तु ब्रिटिश राज के डर से किसी ने सहायता नही दी |तब फडके गाँव के गरीबो के पास गया जहा वासुदेव महाराज कहकर उसकी आरती की जाती और उसको अनेक शुभकामनाये के साथ अन्न दिया जाता था | अब वे उनको वासुदेव महाराज कहकर बुलाने लगे | रामोशी सैनिको ने उससे कहा “सेनापति जी हमे आप अस्त्र-शस्त्र की सुविधा दीजिये , हम आपसे ओर कुछ नही मांगते है | ये दो चीजे दे दीजिये और हम इन विदेशियों को बाहर निकाल देंगे”
अस्त्र शस्त्र के लिए रुपयों के लिए ब्रिटिश सरकार के चाटुकार एवं साहुकारो के घर लुटे गये | सम्पूर्ण महाराष्ट्र तथा कोंकण के तटीय प्रदेश से लुटने की खबर सुन-सुनकर अंग्रेज घबरा गये | ऐसा लगा कि 1857 की स्थिति फिर आ गयी | सरकार को आस्चर्य हो रहा था कि आखिर इसका नेता कौन है ? अंत में एक रामोशी को इतना सताया गया कि उसने वासुदेव का नाम बता दिया | कमिश्नर के कार्यालय में वासुदेव फडके की अनुस्प्थिति के बारे में चर्चा तो होती थी परन्तु कोई सोच नही सकता था कि वह क्रांतिकारी बन गया है | उसी समय वासुदेव फडके ने स्वराज स्थापना की घोषणा कर दी तथा अंग्रेजो को चेतावनी दी कि यदि वे अत्याचार बंद नही करेंगे तो उनका विनाश कर दिया जायेगा |
अब स्वतंत्र सेना सब जगह आक्रमण करने लगी | महाराष्ट्र में कोई भी स्थान अंग्रेजो के लिए सुरक्षित नही रहा | वे भाग-भागकर पुणे और मुम्बई में रहने लगे | फडके को पकड़वाने के लिए चार हजार का पुरुस्कार रखा गया | फडके ने भी गर्वनर या कलेक्टर को पकडकर लाने के लिए पुरुस्कार घोषित किये | सरकार ने मेजर डेनिल के नेतृत्व में एक बड़ी सेना फडके की स्वराज सेना से लड़ने भेजी | तुलसी घाटी में दोनों सेनाओं के बीच घमासान लड़ाई हुयी जिसमे रामोशी का नायक दौलत नायक मारा गया |
उसके मरने से फडके (Vasudev Balwant Phadke) को निराशा हुयी उसी समय वह भी बहुत बीमार हो गया और एक मित्र के घर गंगापुर में छिपकर रहा ठीक होने के बाद वह अपने कुछ विश्वस्त सैनिको के साथ हैदराबाद गया , वहा उसने श्री साईंलम कर्नल जिले में मल्लिकार्जुन स्वामी की कई दिनों तक पूजा की वह 500 पठान सैनिको की नई टुकड़ी तैयार करने की व्यवस्था करने पंडरपुर गया जहा फिर से बीमार हो गया गंगापुर में एक ग्रामीण महिला ने उन्हें देखा और उसने अन्य महिलाओं से कहा कि मैंने वासुदेव महाराज को देखा है !
यह खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी पुलिस के सिपाही की पत्नी ने भी यह सुना और उसने अपने पति को बता दिया ! उसने 4000 रूपये के लोभ के कारण मेजर डेनियल को सूचित किया !
डेनियल ने उनको 20 जुलाई 1879 को बीमारी की हालत में बंदी बना लिया ! उस पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर काले पानी की सजा दे दी गयी ,9 जनवरी 1980 को उन्हें अंडमान जेल भेज दिया गया ! उस पर पुलिस ने इतने अत्याचार किये कि वह टूट गया!
बीमारी एवं पुलिस की यातनाओ के बाद भी उस वीर ने 2 अक्टूबर 1880 को अपनी कोठरी की खिड़की की सलाखों को मोड़ दिया औए जेल की ऊँची दीवार से कूदकर भाग खड़ा हुआ | वह 12 मील तक भागा अंत में पुलिस ने उसको पकड़ लिया | 17 फरवरी 1883 के दिन उसने अंतिम सांस ली | 1857 की असफल क्रान्ति के बाद किसी ने भी क्रान्ति करने का साहस नही किया | ब्रिटिश राज के विरुद्ध क्रान्ति करने वाला वासुदेव बलवंत फडके प्रथम क्रांतिकारी था जो स्वराज का स्वप्न हृदय में लेकर चला गया | परन्तु उसकी प्रेरणा से चापेकर भाइयो ने पुणे में क्रांतिकारी ध्वज लहराया | फडके (Vasudev Balwant Phadke) को स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में प्रथम क्रांतिकारी के रूप में स्मरण किया जाएगा | उसका त्याग बलिदान बाद में क्रान्तिकारियो के लिए आदर्श बन गया |
Great Freedom Fighter of Bharat
Father of the Armed Struggle
Pandit Vasudev Balwant Phadke
Name : Vasudev Balwant Phadke
Birth : 4th Nov 1845
Death :17th Feb 1883
Regarded as :
Father of the ARMED STRUGGLE for India's independence
Founded :
Aikya Vardhini Sabha ,Poona Native Institution (Maharashtra Educational society )
'Swaraj' was only Remedy for their ills
Vasudev Balwant Phadke (Marathi: वासुदेव बळवंत फडके) is widely regarded as the 'father of the armed struggle' of Bharat's independence. He preached that 'Swaraj' was the only remedy for their ills. He can, with justice, be called the father of militant nationalism and Hindutva in Bharat. What the Bharatiya Sepoys tried to do in 1857, followed by the Marathas in three bitter wars and then the Sikhs in 1840, but failed, one man attempted - to take on the mighty British Empire single handed. In true Hindu spirit he took a vow to stir armed rebellion and destroy the British power in Bharat
As a child Vasudev preferred learning skills such as wrestling and horse riding over high school education and dropped out of school. Eventually he moved to Pune and took up a job as a clerk with the military accounts department in Pune for 15 years.
Lahuji (wreslter) preached the importance of independence from the British Raj. Lahuji, who belonged to the Mang community, an untouchable community, taught Vasudev the importance of getting backward castes into the mainstream freedom movement. It was during this period that Vasudev began attending lectures by Mahadeo Govind Ranade which mainly focused on how the British Raj policies hurt the Indian economy. Vasudev was deeply hurt by how this was leading to widespread suffering in the society. In 1870, he joined a public agitation in Pune that was aimed at addressing people's grievances.
Maharashtra Education Society
Vasudev founded an institution, the Aikya Vardhini Sabha, to educate the youth. While working as clerk, Vasudev was not able to see his dying mother due to the delay in approval of his leave. This incident enraged Vasudev and happened to be the turning point in his life. Three social reformers and revolutionaries Phadke, Laxman Narhar Indapurkar and Waman Prabhakar Bhave in 1860 formed the Poona Native Institution, which later came to be known as Maharashtra Education Society.
In 1875, after the then Gaikwad ruler of Baroda was deposed by the British, Phadke launched protest speeches against the government. Severe famine coupled with the evident apathy of the British administration propelled him to tour the Deccan region, urging people to strive for a free republic. Unable to get support from the educated classes, he gathered a band of people from the Ramoshi caste. People from the Kolis, Bhils and Dhangars were also included later. He taught himself to shoot, ride and fence. He organised around 300 men into an insurgent group that aimed at liberating India from British rule.
Vasudev intended to build an army of own but lacking funds they decided to break into government treasuries. The first raid was done in a village called Dhamari in Shirur taluka in Pune district. The income tax which was collected for British Raj was kept in the house of local business man Mr. Balchand Fojmal Sankla. They attacked the house and took the money for the benefit of famine stricken villagers. There they collected about four hundred rupees but this led to his being branded as a dacoit .
To save himself Vasudev had to flee from village to village, sheltered by his sympathisers and well-wishers, mostly the lower class of the society. Impressed by his zeal and determination, the villagers of Nanagaum offered him protection and cover in the local forest. The general plot would be to cut off all the communications of British forces and then raid the treasury. The main purpose of these raids was to feed famine-affected farmer communities. Vasudev performed many such raids in areas near Shirur and Khed talukas in Pune. Meanwhile, the leader of Ramoshi, Daulatrav Naik, who was the main supporter of Vasudev, headed towards the Konkan area on the western coast. On 10-11 May 1879, they raided Palaspe and Chikhali, looting around 1.5 lakh rupees. While returning towards Ghat Matha, Major Daniel attacked Naik, who was shot dead. His death was a setback to Vasudev's revolt: the loss of support forced him to move south to the Shri Shaila Mallikarjun shrine. Later, Vasudev recruited about 500 Rohilas to begin a fresh fight.
Bust of Phadke in Mumbai
His efforts, however, met with only very limited success and he was greatly disappointed. The Government, meanwhile, to the danger and offered a reward for his capture. Undaunted, he issued a proclamation threatening the government with dire consequences and offered a reward for the capture of the Governor of Bombay. He moved over to Nizam's territories to recruit Rohilla and Arabs to his cause. He was captured in Nizam's dominion in July 1879. His own diary and autobiography were the two major documents produced as evidence against him. He was sentenced to transportation for life and was considered too dangerous to be kept even at the Andamans. He died in prison at Aden on 17th February, 1883.
Bharat Mata ki Jai 💞🕉️🚩💐🇮🇳💞🙏
Comments
Post a Comment