क्रांतिकारी रोशन सिंह की जीवनी !
क्रांतिकारी रोशन सिंह की जीवनी
Thakur Roshan Singh– रोशन सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्हें 1921-22 के असहकार आंदोलन के समय बरेली शूटिंग केस में सजा सुनाई गयी थी। बरेली सेंट्रल जेल से रिहा होने के बाद 1924 में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गये। जबकि काकोरी हत्या कांड में उनका हाथ नही था लेकिन फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मौत की सजा सुनाई।
रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को नवाडा गाँव के राजपूत परिवार में कौशल्यानी देवी और जंगी राम सिंह यहाँ हुआ था। यह छोटा गाँव उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में स्थित है। वे एक अच्छे शूटर और रेसलर थे। साथ ही वे लम्बे समय तक शाहजहांपुर के आर्य समाज से भी जुड़े हुए थे। जब उत्तर प्रदेश सरकार ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वालंटियर कोर्प्स पर नवम्बर 1921 में बंदी लगा दी थी, तब देश के सभी कोनो से सरकार के इस निर्णय का विरोध किया जा रहा था। ठाकुर रोशन सिंह ने शाहजहांपुर जिले से बरेली भेजे जा रहे आक्रामक सेना वालंटियर्स का नेतृत्व किया था। पुलिस ने भी जुलुस को रोकने के लिए गोलियों का सहारा लिया था और इसके बाद रोशन सिंह और दुसरे जुलुसकर्ताओ को गिरफ्तार किया गया था। उनपर केस दाखल कर उन्हें 2 साल तक बरेली के सेंट्रल जेल में कैद किया गया था।
HRA में शामिल हुए –
जबसे उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में उनका स्वागत किया गया, तबसे वह क्षेत्र वहाँ की मोटी और असभ्य भाषा के लिए प्रसिद्ध था। जेल में रहते समय जेलर उनसे बुरा व्यवहार करता था, लोगो के अनुसार जेल में ब्रिटिश लोग उन्हें कठोर परिस्थितियों में रखते थे। रोशन सिंह के लिए इतना पर्याप्त था और तब उन्होंने जेल में ही यह निश्चित कर लिया की वह ब्रिटिश सरकार से उनके असभ्य व्यवहार का बदला जरुर लेंगे। और जैसे ही वे बरेली की सेंट्रल जेल से रिहा हुए वे तुरंत शाहजहांपुर चले गये और वहाँ वे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से आर्य समय के घर में मिले। बिस्मिल पहले से ही अपनी क्रांतिकारी पार्टी के लिए किसी अच्छे शूटर की तलाश में थे। इसीलिए बिस्मिल ने तुरंत ठाकुर को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और उन्होंने ठाकुर को पार्टी के सभी सदस्यों को शूटिंग सिखाने के लिए भी कहा।
बमरौली कारवाई –
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) पैसे जमा करने के लिए काफी संघर्ष कर रहा था। समाज के अमीर लोग इस युवा संस्था को एक पैसा भी देना नही चाहते थे। जबकि वे कांग्रेस और स्वराज पार्टी को खुले हाथो से पैसा देते थे। तभी ठाकुर रोशन सिंह ने राम प्रसाद बिस्मिल को समाज के अमीर लोगो के घर से पैसा चोरी करने की सलाह दी। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने भी इसे नया मोड़ दिया, और इसे करवाई का नाम दिया गया। कहा जाता है की यह उनकी पार्टी का ही कोड वर्ड था।
25 दिसम्बर 1924 को (क्रिसमस की रात) को बलदेव प्रसाद पर रात में आक्रमण कर HRA के एक्शन-मैन ने ठाकुर रोशन सिंह के नेतृत्व में हत्या कर दी। बलदेव पैसे उधार देने वाला और सुगर किंग का व्यवसाय करने वाला इंसान था। इस कारवाई में उनके हाथ 4000 रुपये लगे और कुछ हथियार में उन्हें मिले। गाँव के एक रेसलर मोहन लाल ने उन्हें चुनौती भी दी और गोली भी चलाई। ठाकुर रोशन सिंह जो एक एक बेहतरीन शूटर थे, उन्होंने रेसलर को एक ही गोली में मार दिया और उसकी रिफिल भी जप्त कर ली।
काकोरी षड्यंत्र –
ठाकुर रोशन सिंह काकोरी ट्रेन लुट में शामिल ही नही थे फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और मोहन लाल के खून में मौत की सजा सुनाई गयी। जब सजा सुनाई जा रही थी तब जज ने IPC के सेक्शन 121 (A) और 120 (B) के तहत पाँच साल की सजा सुनाई थी, और रोशन सिंह इंग्लिश शब्द “पाँच साल” आसानी से समझ सकते थे, सजा सुनने के बाद ठाकुर रोशन सिंह ने जज से उन्हें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के गुनाह जितनी सजा ना सुनाने की सिफारिश भी की थी, लेकिन तभी विष्णु शरण दुब्लिश ने उनके कानो में कहा, “ठाकुर साहेब! आपको पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जितनी ही सजा मिलेंगी” दुब्लिश के मुह से यह शब्द सुनते ही ठाकुर रोशन सिंह अपनी खुर्ची से उठ खड़े हुए और पंडित को गले लगाते हुए ख़ुशी से कहाँ, “ओये पंडित! क्या तुम फाँसी तक भी अकेले जाना चाहोंगे? ठाकुर अब तुम्हे और अकेला नही छोड़ना चाहता। यहाँ भी वह तुम्हारे ही साथ जायेंगा।”
निंदा सेल से आखिरी शब्द –
अलाहाबाद के मलाका जेल के निंदा सेल से ठाकुर रोशन सिंह ने अपने भाई हुकुम सिंह को पत्र लिखा था। जिसमे लिखा था, “इंसान का जीवन ही भगवान की सबसे सुंदर रचना है और मै बहुत खुश हूँ की मै अपने जीवन का बलिदान भगवान की इस रचना के लिए कर रहा हूँ। मै अपने गाँव नबादा का पहला इंसान हूँ जो अपने भाई बहनों को इस तरह से गौरवान्वित करने जा रहा हूँ। इस नश्वर मानवी शरीर के लिए क्यू पछताना, जो कभी भी एक दिन नष्ट हो सकती है। मै बहुत खुश हूँ की मैंने अपना अंतिम सने ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने में बिताया। मै जानता हूँ की इंसान के कार्य करते समय ही उसके रास्ते में मौत आती है। आपको मेरी मौत के बारे में चिंता करने की कोई जरुरत नही है। मै भगवान की गोद में शांति से सोने जा रहा हूँ।”
Santoshkumar B Pandey at 1.50Am.
Thakur Roshan Singh– रोशन सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्हें 1921-22 के असहकार आंदोलन के समय बरेली शूटिंग केस में सजा सुनाई गयी थी। बरेली सेंट्रल जेल से रिहा होने के बाद 1924 में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गये। जबकि काकोरी हत्या कांड में उनका हाथ नही था लेकिन फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मौत की सजा सुनाई।
रोशन सिंह का जन्म 22 जनवरी 1892 को नवाडा गाँव के राजपूत परिवार में कौशल्यानी देवी और जंगी राम सिंह यहाँ हुआ था। यह छोटा गाँव उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में स्थित है। वे एक अच्छे शूटर और रेसलर थे। साथ ही वे लम्बे समय तक शाहजहांपुर के आर्य समाज से भी जुड़े हुए थे। जब उत्तर प्रदेश सरकार ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वालंटियर कोर्प्स पर नवम्बर 1921 में बंदी लगा दी थी, तब देश के सभी कोनो से सरकार के इस निर्णय का विरोध किया जा रहा था। ठाकुर रोशन सिंह ने शाहजहांपुर जिले से बरेली भेजे जा रहे आक्रामक सेना वालंटियर्स का नेतृत्व किया था। पुलिस ने भी जुलुस को रोकने के लिए गोलियों का सहारा लिया था और इसके बाद रोशन सिंह और दुसरे जुलुसकर्ताओ को गिरफ्तार किया गया था। उनपर केस दाखल कर उन्हें 2 साल तक बरेली के सेंट्रल जेल में कैद किया गया था।
HRA में शामिल हुए –
जबसे उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में उनका स्वागत किया गया, तबसे वह क्षेत्र वहाँ की मोटी और असभ्य भाषा के लिए प्रसिद्ध था। जेल में रहते समय जेलर उनसे बुरा व्यवहार करता था, लोगो के अनुसार जेल में ब्रिटिश लोग उन्हें कठोर परिस्थितियों में रखते थे। रोशन सिंह के लिए इतना पर्याप्त था और तब उन्होंने जेल में ही यह निश्चित कर लिया की वह ब्रिटिश सरकार से उनके असभ्य व्यवहार का बदला जरुर लेंगे। और जैसे ही वे बरेली की सेंट्रल जेल से रिहा हुए वे तुरंत शाहजहांपुर चले गये और वहाँ वे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से आर्य समय के घर में मिले। बिस्मिल पहले से ही अपनी क्रांतिकारी पार्टी के लिए किसी अच्छे शूटर की तलाश में थे। इसीलिए बिस्मिल ने तुरंत ठाकुर को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और उन्होंने ठाकुर को पार्टी के सभी सदस्यों को शूटिंग सिखाने के लिए भी कहा।
बमरौली कारवाई –
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) पैसे जमा करने के लिए काफी संघर्ष कर रहा था। समाज के अमीर लोग इस युवा संस्था को एक पैसा भी देना नही चाहते थे। जबकि वे कांग्रेस और स्वराज पार्टी को खुले हाथो से पैसा देते थे। तभी ठाकुर रोशन सिंह ने राम प्रसाद बिस्मिल को समाज के अमीर लोगो के घर से पैसा चोरी करने की सलाह दी। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने भी इसे नया मोड़ दिया, और इसे करवाई का नाम दिया गया। कहा जाता है की यह उनकी पार्टी का ही कोड वर्ड था।
25 दिसम्बर 1924 को (क्रिसमस की रात) को बलदेव प्रसाद पर रात में आक्रमण कर HRA के एक्शन-मैन ने ठाकुर रोशन सिंह के नेतृत्व में हत्या कर दी। बलदेव पैसे उधार देने वाला और सुगर किंग का व्यवसाय करने वाला इंसान था। इस कारवाई में उनके हाथ 4000 रुपये लगे और कुछ हथियार में उन्हें मिले। गाँव के एक रेसलर मोहन लाल ने उन्हें चुनौती भी दी और गोली भी चलाई। ठाकुर रोशन सिंह जो एक एक बेहतरीन शूटर थे, उन्होंने रेसलर को एक ही गोली में मार दिया और उसकी रिफिल भी जप्त कर ली।
काकोरी षड्यंत्र –
ठाकुर रोशन सिंह काकोरी ट्रेन लुट में शामिल ही नही थे फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया और मोहन लाल के खून में मौत की सजा सुनाई गयी। जब सजा सुनाई जा रही थी तब जज ने IPC के सेक्शन 121 (A) और 120 (B) के तहत पाँच साल की सजा सुनाई थी, और रोशन सिंह इंग्लिश शब्द “पाँच साल” आसानी से समझ सकते थे, सजा सुनने के बाद ठाकुर रोशन सिंह ने जज से उन्हें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के गुनाह जितनी सजा ना सुनाने की सिफारिश भी की थी, लेकिन तभी विष्णु शरण दुब्लिश ने उनके कानो में कहा, “ठाकुर साहेब! आपको पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जितनी ही सजा मिलेंगी” दुब्लिश के मुह से यह शब्द सुनते ही ठाकुर रोशन सिंह अपनी खुर्ची से उठ खड़े हुए और पंडित को गले लगाते हुए ख़ुशी से कहाँ, “ओये पंडित! क्या तुम फाँसी तक भी अकेले जाना चाहोंगे? ठाकुर अब तुम्हे और अकेला नही छोड़ना चाहता। यहाँ भी वह तुम्हारे ही साथ जायेंगा।”
निंदा सेल से आखिरी शब्द –
अलाहाबाद के मलाका जेल के निंदा सेल से ठाकुर रोशन सिंह ने अपने भाई हुकुम सिंह को पत्र लिखा था। जिसमे लिखा था, “इंसान का जीवन ही भगवान की सबसे सुंदर रचना है और मै बहुत खुश हूँ की मै अपने जीवन का बलिदान भगवान की इस रचना के लिए कर रहा हूँ। मै अपने गाँव नबादा का पहला इंसान हूँ जो अपने भाई बहनों को इस तरह से गौरवान्वित करने जा रहा हूँ। इस नश्वर मानवी शरीर के लिए क्यू पछताना, जो कभी भी एक दिन नष्ट हो सकती है। मै बहुत खुश हूँ की मैंने अपना अंतिम सने ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने में बिताया। मै जानता हूँ की इंसान के कार्य करते समय ही उसके रास्ते में मौत आती है। आपको मेरी मौत के बारे में चिंता करने की कोई जरुरत नही है। मै भगवान की गोद में शांति से सोने जा रहा हूँ।”
Santoshkumar B Pandey at 1.50Am.
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