देश के खातिर इस क्रांतिकारी ने मां से उधार लेकर खरीदे थे हथियार !
देश के खातिर इस क्रांतिकारी ने मां से उधार लेकर खरीदे थे हथियार !
ग्वालियर से अपनी बहन के कपड़ों में छिपाकर शाहजहांपुर तक लाए थे हथियार, काकोरी ट्रेन डकैती में किया था इनका इस्तेमाल। हथियार बनाने का काम करने वाले एक परिवार के व्यक्ति को बनाया दोस्त, उसी की मदद से खरीदे।
ग्वालियर। काकोरी ट्रेन डकैती के लिए ग्वालियर से हथियार खरीदे थे। यह हथियार शाहजहांपुर तक महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल अपनी बहन शास्त्री देवी के कपड़ों में छिपाकर शाहजहांपुर तक लाए थे। हथियार खरीदने के लिए धन बिस्मिल ने अपनी मां मूलवती देवी से उधार लिया था। इसका उल्लेख बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में किया है।
फांसी की खबर सूनते ही खौल उठा था खून पं .रामप्रसाद बिस्मिल मूलत: तत्कालीन ग्वालियर स्टेट में मुरैना के रूअर-बरवाई गांव के निवासी थे। लेकिन अकाल के दौरान उनके पिता गरीबी और पारिवारिक कलह की वजह से उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर आ गए, और जीवन यापन करने लगे। बिस्मिल इसी माहौल में बड़े हुए और आर्यसमाजी क्रांतिकारी भाई परमानंद को अंग्रेजों द्वारा षडयंत्रपूर्वक फांसी की सजा सुनाए जाने पर उनका खून खौल उठा।
इसके बाद उन्होंने उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी (एचआरए) की स्थापना की, जिससे बाद में धीरे-धीरे चंद्रशेखर आजाद और अशफाक उल्लाह खां जैसे क्रांतिकारी विचारों के युवा जुड़ गए। बिस्मिल ने ही क्रांति के लिए जरूरी धन जुटाने के लिए अंग्रेजों के सरकारी खजानों को लूटने की रणनीति बनाई साथ ही हथियार जुटाने का जिम्मा खुद लिया।
बिना लाइसेंस मिले हथियार हथियारों के लिए पैसे की जरूरत के चलते बिस्मिल ने मां से किसी प्रकार 5 हजार रुपए उधार लिए और ग्वालियर आ गए। उन दिनों ग्वालियर में हथियार आसानी से मिल जाते थे। यहां सिंधिया का शासन था और हथियारों के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती थी। अत: हथियार जटाने में उन्हें किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
रिवाल्वर और माउजर खरीदी मुरैना के मूल निवासी होने के कारण बिस्मिल ने अपने संपर्कों से एक ऐसे व्यक्ति को अपना दोस्त बना लिया जिसके परिवार वाले हथियार बनाने का काम करते थे। इसी व्यक्ति से बिस्मिल ने एचआरए के लिए 155 रुपए में 1 रिवाल्वर और 100 कारतूस खरीदे। एक रिटायर्ड पुलिस अफसर की रायफल 250 रुपए में खरीदी।
इसके अलावा एक पुलिस अफसर की रिवाल्वर बिस्मिल को अपने लिए जंच गई, तो उन्होंने उसके नौकर को लालच दे रिवाल्वर चोरी कराई, और 100 रुपए में खरीद ली। इसी तरह एक माउजर भी चोरी कराई और 300 रुपए में खरीद ली। कपड़ों में लाए हथियार !
1. रामप्रसाद बिस्मिल के लिए सबसे बड़ी समस्या खरीदे गए इन हथियारों को शाहजहांपुर तक ले जाने की थी, उनकी छोटी बहन शास्त्री देवी की ससुराल उत्तरप्रदेश में आगरा के नजदीक पिनाहट के कोसमा गांव में थी। वहीं से जंगली रास्तों से आसानी से मैनपुरी पहुंचा जा सकता था। अत: बहन को विदा कराने के बहाने बिस्मिल उन्हें कोसमा से लेकर मैनपुरी होते हुए शाहजहांपुर तक ले आए। इनके कपड़ों में ही छिपाकर हथियार भी शाहजहांपुर पहुंच गए। इसके बाद बिस्मिल ने कुछ किताबें लिख कर प्रकाशित कराईं और मां से लिया उधार चुका दिया।
काकोरी में ट्रेन डकैती हथियार आ जाने से क्रांतिकारियों में दूगना जोश आ गया। इसके बाद क्रांति के लिए जरूरी पैसों की पूर्ति के लिए उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास काकोरी में 9 अगस्त, 1925 को क्रांतिकारियों ने ट्रेन से ले जाए जा रहे अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया। इसी घटना को इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। ये डकैती क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित तरीके से डाली।
इस दौरान ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू किया गया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर क्रांतिकारियों ने खजाना लूट लिया। डकैती में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आजाद, रोशन सिंह, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल और मन्मथनाथ गुप्त, शामिल थे। जिसके बाद इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुकदमा चलाया गया। रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी रोशनसिंह और अशफाक उल्लाह को फांसी दी गई।
ग्वालियर से अपनी बहन के कपड़ों में छिपाकर शाहजहांपुर तक लाए थे हथियार, काकोरी ट्रेन डकैती में किया था इनका इस्तेमाल। हथियार बनाने का काम करने वाले एक परिवार के व्यक्ति को बनाया दोस्त, उसी की मदद से खरीदे।
ग्वालियर। काकोरी ट्रेन डकैती के लिए ग्वालियर से हथियार खरीदे थे। यह हथियार शाहजहांपुर तक महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल अपनी बहन शास्त्री देवी के कपड़ों में छिपाकर शाहजहांपुर तक लाए थे। हथियार खरीदने के लिए धन बिस्मिल ने अपनी मां मूलवती देवी से उधार लिया था। इसका उल्लेख बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में किया है।
फांसी की खबर सूनते ही खौल उठा था खून पं .रामप्रसाद बिस्मिल मूलत: तत्कालीन ग्वालियर स्टेट में मुरैना के रूअर-बरवाई गांव के निवासी थे। लेकिन अकाल के दौरान उनके पिता गरीबी और पारिवारिक कलह की वजह से उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर आ गए, और जीवन यापन करने लगे। बिस्मिल इसी माहौल में बड़े हुए और आर्यसमाजी क्रांतिकारी भाई परमानंद को अंग्रेजों द्वारा षडयंत्रपूर्वक फांसी की सजा सुनाए जाने पर उनका खून खौल उठा।
इसके बाद उन्होंने उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी (एचआरए) की स्थापना की, जिससे बाद में धीरे-धीरे चंद्रशेखर आजाद और अशफाक उल्लाह खां जैसे क्रांतिकारी विचारों के युवा जुड़ गए। बिस्मिल ने ही क्रांति के लिए जरूरी धन जुटाने के लिए अंग्रेजों के सरकारी खजानों को लूटने की रणनीति बनाई साथ ही हथियार जुटाने का जिम्मा खुद लिया।
बिना लाइसेंस मिले हथियार हथियारों के लिए पैसे की जरूरत के चलते बिस्मिल ने मां से किसी प्रकार 5 हजार रुपए उधार लिए और ग्वालियर आ गए। उन दिनों ग्वालियर में हथियार आसानी से मिल जाते थे। यहां सिंधिया का शासन था और हथियारों के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती थी। अत: हथियार जटाने में उन्हें किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।
रिवाल्वर और माउजर खरीदी मुरैना के मूल निवासी होने के कारण बिस्मिल ने अपने संपर्कों से एक ऐसे व्यक्ति को अपना दोस्त बना लिया जिसके परिवार वाले हथियार बनाने का काम करते थे। इसी व्यक्ति से बिस्मिल ने एचआरए के लिए 155 रुपए में 1 रिवाल्वर और 100 कारतूस खरीदे। एक रिटायर्ड पुलिस अफसर की रायफल 250 रुपए में खरीदी।
इसके अलावा एक पुलिस अफसर की रिवाल्वर बिस्मिल को अपने लिए जंच गई, तो उन्होंने उसके नौकर को लालच दे रिवाल्वर चोरी कराई, और 100 रुपए में खरीद ली। इसी तरह एक माउजर भी चोरी कराई और 300 रुपए में खरीद ली। कपड़ों में लाए हथियार !
1. रामप्रसाद बिस्मिल के लिए सबसे बड़ी समस्या खरीदे गए इन हथियारों को शाहजहांपुर तक ले जाने की थी, उनकी छोटी बहन शास्त्री देवी की ससुराल उत्तरप्रदेश में आगरा के नजदीक पिनाहट के कोसमा गांव में थी। वहीं से जंगली रास्तों से आसानी से मैनपुरी पहुंचा जा सकता था। अत: बहन को विदा कराने के बहाने बिस्मिल उन्हें कोसमा से लेकर मैनपुरी होते हुए शाहजहांपुर तक ले आए। इनके कपड़ों में ही छिपाकर हथियार भी शाहजहांपुर पहुंच गए। इसके बाद बिस्मिल ने कुछ किताबें लिख कर प्रकाशित कराईं और मां से लिया उधार चुका दिया।
काकोरी में ट्रेन डकैती हथियार आ जाने से क्रांतिकारियों में दूगना जोश आ गया। इसके बाद क्रांति के लिए जरूरी पैसों की पूर्ति के लिए उत्तर प्रदेश में लखनऊ के पास काकोरी में 9 अगस्त, 1925 को क्रांतिकारियों ने ट्रेन से ले जाए जा रहे अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया। इसी घटना को इतिहास में काकोरी षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। ये डकैती क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित तरीके से डाली।
इस दौरान ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू किया गया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर क्रांतिकारियों ने खजाना लूट लिया। डकैती में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ अशफाकउल्ला, चन्द्रशेखर आजाद, रोशन सिंह, राजेन्द्र लाहिड़ी, सचीन्द्र सान्याल और मन्मथनाथ गुप्त, शामिल थे। जिसके बाद इस घटना से जुड़े 43 अभियुक्तों पर मुकदमा चलाया गया। रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी रोशनसिंह और अशफाक उल्लाह को फांसी दी गई।
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